राजस्थान के अलवर और उसके विभिन्न क्षेत्रों जैसे, तिजारा, खानपुर, किशनगढ़, मलखेड़ा में जलेबी रोग (jalebee rog) प्याज के किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। कुछ खेत तो ऐसे हैं जिनमें प्याज की फसल (pyaaj kee phasal) नब्बे प्रतिशत तक खराब हो गयी है।

राजस्थान के अलवर और उसके विभिन्न क्षेत्रों जैसे, तिजारा, खानपुर, किशनगढ़, मलखेड़ा में जलेबी रोग (jalebee rog) प्याज के किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। कुछ खेत तो ऐसे हैं जिनमें प्याज की फसल (pyaaj kee phasal) नब्बे प्रतिशत तक खराब हो गयी है।
आम एक रसदार फल हैं. जिसको फलों का राजा भी कहा जाता है. विश्वभर में आम के उत्पादन की दृष्टि से भारत का पहला स्थान है. आम का फल अपने स्वाद, रंग और खुशबू की वजह से सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. आम के फल में विटामिन ए और सी सबसे ज्यादा मात्रा मे पाए जाते हैं. आम का इस्तेमाल अचार, जूस, जैम और जेली जैसी और भी कई तरह की चीज़ो में होता है .
दोस्तों इस पोस्ट में हम बात करेंगे सुमिटोमो केमिकल के प्रोजीब इजी के बारे में और साथ ही आपको बताएँगे की केले की फसल में प्रोजीब इजी का चमत्कार देखने के लिए इसे कब और कितना इस्तेमाल करना है। सुमिटोमो केमिकल का प्रोजिब इजी, सबसे अच्छा जिब्रेलिक एसिड उत्पाद है।
दुनिया में फ़िलीपीन्स, इंडोनेशिया, समेत कई अन्य देशों में लाखों किसानों ने इसे अपनाया है। और अगर इंडिया की बात करें तो प्रोजिब इजी केले की खेती करने वाले हर प्रगतिशील किसान की पहली पसंद है। प्रोजिब इजी में है उत्तम क्वालिटी का जिब्रेलिक एसिड।
भारत में मक्का का सीजन बरसात के मौसम में आता है। और, यही मौसम फॉल आर्मी वर्म कीट का भी मनपसंद मौसम होता है। आज हम इससे मक्का की फसल में होने वाले नुकसान और रोकथाम के विषय में चर्चा करेंगे।
कैसा होता है आर्मी फॉल वार्म
आर्मी फॉल वार्म या लश्करी इल्ली एक प्रकार की इल्ली है. यह जिस फसल पर लग जाती है. उसको पूरी तरह से ख़राब कर देती है. यह चार अवस्थाए होती है पहले तो अंडा बनता है. इसी अंडे से लार्वा बनता है. यह तैयार होने में 14 से 15 दिन का समय लेता है. इसी लार्वे से प्यूपा बनता है और प्यूपा से यह पूरा व्यस्क कीट बन जाता है. इसका पूरा जीवनकाल 60 से 90 दिन होता है. इसका प्रकोप लगातार बढ़ता ही जा रहा है.
किसान भाइयों जैसा कि आप देख रहे होंगे की बारिश के बाद तापमान लगातार बढ़ा हुआ है। यह मौसम सफेद-मक्खी के लिए बहुत अनुकूल है हमारी कपास (या नरमा) अब सफेद-मक्खी के प्रभाव में आ सकती है।
कपास की सफेद मक्खी के बारे में : सफ़ेद मक्खी को अंग्रेजी में वाइट फ्लाई (White Fly In Cotton) के नाम से जाना जाता है। सफेद मक्खी छोटा सा तेज उडऩे वाला पीले शरीर और सफेद पंख का कीड़ा है। छोटा एवं हल्के होने के कारण ये कीट हवा द्वारा एक से दूसरे स्थान तक आसानी से चले जाते हैं।
कपास की खेती नगदी फसल के रूप में होती है. इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है. इसकी खेती भारत के कई राज्यों में की जाती है. बाजार में कपास की कई प्रजातियाँ आती हैं, जिनसे ज्यादा पैदावार मिलती है. सबसे ज्यादा लम्बे रेशों वाली कपास को अच्छा माना जाता है.
मिर्च एक नकदी फसल होती है. जिसकी खेती से अधिक लाभ कमाया जा सकता है.यह हमारे भोजन का एक अहम हिस्सा है. अगर स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाये, तो यह हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद है, क्योंकि इसमें विटामिन ए, सी फॉस्फोरस, कैल्शियम समेत कई कुछ लवण पाये जाते है. भारतीय घरों में मिर्च को अचार, मसालों और सब्जी की तरह उपयोग किया जाता है.
काले गेहूं की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करना चाहिए. देर से बुवाई करने पर उपज में कमी होती है. जैसे-जैसे बुवाई में विलम्ब होता जाता है, गेहूं की पैदावार में गिरावट की दर बढ़ती चली जाती है. दिसंबर में बुवाई करने पर गेहूं की पैदावार 3 से 4 कु0/ हे0 एवं जनवरी में बुवाई करने पर 4 से 5 कु0/ हे0 प्रति सप्ताह की दर से घटती है.
सोयाबीन विश्व की एक प्रमुख फसल है। हमारे देश में यह विगत वर्षो में न केवल उच्च प्रोटीन वरन खाद्य तेल युक्त महत्वपूर्ण फसल के रूप में उभरी है। सोयाबीन उगाने वाले राज्यों में मध्यप्रदेश क्षेत्रफल (5.2 मिलियन हेक्टेयर) एवं उत्पादन (5.1 मिलियन टन) की दृष्टि से अग्रणी है तथा देश के सोयाबीन उत्पादन में 80 प्रतिशत का भागीदार है।
कपास की खेती भारत की सबसे महत्वपूर्ण रेशा और नगदी फसल में से एक है. और देश की औदधोगिक व कृषि अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. कपास की खेती लगभग पुरे विश्व में उगाई जाती है. यह कपास की खेती वस्त्र उद्धोग को बुनियादी कच्चा माल प्रदान करता है. भारत में कपास की खेती लगभग 6 मिलियन किसानों को प्रत्यक्ष तौर पर आजीविका प्रदान करता है और 40 से 50 लाख लोग इसके व्यापार या प्रसंस्करण में कार्यरत है.