article 5 image 1

आम के प्रमुख कीट, रोग एवं उनका नियंत्रण

आम एक रसदार फल हैं. जिसको फलों का राजा भी कहा जाता है. विश्वभर में आम के उत्पादन की दृष्टि से भारत का पहला स्थान है. आम का फल अपने स्वाद, रंग और खुशबू की वजह से सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. आम के फल में विटामिन ए और सी सबसे ज्यादा मात्रा मे पाए जाते हैं. आम का इस्तेमाल अचार, जूस, जैम और जेली जैसी और भी कई तरह की चीज़ो में होता है .

आम की खेती समुद्रतल से लगभग 600 मीटर ऊंचाई पर उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु वाली जगहों पर की जाती है. इसके पौधे को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है. आम की खेती के लिए क्षारीय पी.एच. वाली जमीन उपयुक्त नही होती. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. आम की पैदावार से किसान भाई अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. अगर आप भी आम की खेती कर अच्छी कमाई करना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती में बारें सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

keitt mango fruit

mango fruit

उपयुक्त मिट्टी आम की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. जबकि अधिक बलुई, पथरीली, क्षारीय और जल भराव वाली भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए. क्योंकि अधिक क्षारीय भूमि में इसकी खेती करने पर इसकी पैदावार के साथ साथ फलों की गुणवत्ता में भी कमी देखने को मिलती है. जलवायु और तापमान आम की खेती के लिए उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती है. भारत में आम की खेती गर्मियों के मौसम में की जाती है. पौधे पर फूल आने और फल बनने के दौरान शुष्क मौसम उपयोगी होता है. फूलों से फल बनने के बाद उनके पकने के वक्त होने वाली हल्की बारिश पौधे के लिए उपयोगी होती है. वायु में अधिक समय तक रहने वाली आद्रता इसकी खेती के लिए नुकसानदायक होती है. आम के पौधे को शुरुआत में विकास करने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है. उसके बाद पौधे पर फूलों से फल बनने और उनके विकास करने के लिए 27 डिग्री के आसपास तापमान की जरुरत होती है.

mango

mango

उन्नत किस्में आम की कई तरह की किस्में मौजूद हैं. इन सभी किस्मों को उनके स्वाद, रस और पकने के टाइम के आधार पर तैयार किया गया है. देशी प्रजाति बंबइया : आम की ये एक जल्द पकने वाली किस्म है. इस किस्म के आम पकने के बाद भी हरे दिखाई देते हैं. इसके फलों में गुदे की मात्रा ज्यादा और अधिक मिठास पाई जाती है. इस किस्म के फल मई फूल आने के बाद मई माह तक पककर तैयार हो जाते हैं. तोतापरी : तोतापरी आम को उसके आकार के हिसाब से पहचाना जा सकता है. इस किस्म के आम का आकार तोते की चोंच जैसा होती है. इस किस्म के फलों में मिठास कम पाई जाती है. जिस कारण इनका ज्यादा उपयोग अचार, जूस और पेय पदार्थों को बनाने के लिए किया जाता है. लंगड़ा आम : आम की इस प्रजाति की उत्पत्ति के बारें में एक बहुत ही बड़ी पौराणिक कहानी मानी जाती है. इस किस्म के आम बनारस के आसपास ज्यादा पाए जाते हैं. और बनारस ही इस प्रजाति के आमों का जन्म स्थल है. इसके फलों का स्वाद बड़ा ही अनोखा है. जिस कारण भारत में इस किस्म के आम बहुत पसंद किये जाते हैं. इस किस्म के फल अंडाकार होते हैं. इसके पके हुए फल हरे और पीले रंग के होते हैं.

mango

mango

दशहरी : आम की इस किस्म को उत्तर प्रदेश में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे अधिक उपज देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के फल अधिक मीठे होते हैं. जो जून माह के शुरुआत में ही पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के फलों का रंग पीला होता है. अल्फांसो : आम की इस किस्म को अलग अलग जगहों पर गुन्डू, खादर, बादामी, हापुस और कागदी के नाम से भी जाना जाता है. इस किस्म के फलों का ज्यादा उत्पादन महाराष्ट्र में किया जाता है. इसके फलों का रंग पीला और नारंगी होता है. जो मई महीने में पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के फल तिरछे, अंडाकार और स्वाद में मीठे होते हैं. इस किस्म के फलों को ज्यादा टाइम तक संरक्षित कर रखा जा सकता है. केसर : इस किस्म के आम को गुजरात में सबसे ज्यादा उगाया जाता है. इसके फलों का आकर लम्बा होता है. जिनके दोनों तरफ के सिरे लाल दिखाई देते हैं. लेकिन इनका स्वाद बहुत मीठा होता हैं. इस किस्म के आमों का भंडारण काफी वक्त तक किया जा सकता है. इस किस्म के आम मौसम की शुरुआत में ही पककर तैयार हो जाते हैं. नीलम : इस किस्म के आमों का भंडारण भी अधिक समय तक किया जा सकता है. इस किस्म एक फल अंडाकार और सामान्य आकर का होता हैं. जिनका रंग गहरा पीला होता है. और इसके फलों का स्वाद बहुत मीठा होता हैं. इस किस्म के फल पकने में ज्यादा वक्त लेते हैं. इस कारण इसे पछेती किस्मों में शामिल किया गया है.

Mango Farming

Mango Farming

संकर प्रजाति संकर प्रजाति के आम की किस्मों को देशी प्रजाति की किस्मों के साथ संकरण के माध्यम से तैयार किया गया है. आम्रपाली : इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा दशहरी और नीलम किस्म के संकरण के माध्यम से तैयार किया गया है. इस किस्म के फल सामान्य आकर के होते हैं. जिनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 200 से 250 किवंटल के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के फल स्वादिष्ट होते हैं. जो पकने पर पीले दिखाई देते हैं. इस किस्म का निर्माण सघन रोपाई के लिए किया गया है. मल्लिका : इस किस्म को भी दशहरी और नीलम किस्मों के संकरण के माध्यम से तैयार किया गया है. आम की इस किस्म के फल बड़े आकार में पाए जाते हैं. जिनका रंग पीला गुलाबी होता है. इसके फलों में गुदे की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म के फलों को अधिक समय तक संरक्षित कर रखा जा सकता है. इस किस्म का ज्यादा उपयोग व्यापारिक चीजों को बनाने में किया जाता है. पूसा लालिमा : इस किस्म के फलों का आकार सामान्य से थोड़ा बड़ा होता है. जिनके छिलके का रंग लाल और गुदा नारंगी होता है. इस किस्म के फल मीठे और स्वादिष्ट होते हैं. इसके फल लम्बे और सामान्य आकार वाले होते हैं. इस किस्म के फलों की विदेशी बाज़ार में ज्यादा मांग है. और इनका भंडारण अधिक समय तक किया जा सकता है. अम्बिका : इस किस्म को केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ द्वारा आम्रपाली और जनार्दन पसन्द के संकरण के द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म का फल मध्यम आकार का होता है. जिनका रंग पीला और फलों में गुदे की मात्रा सामान्य पाई जाती है. इस किस्म के फल देरी से पककर तैयार होते हैं. अरुणिका : आम की इस किस्म को आम्रपाली और वनराज के संकरण के माध्यम से तैयार किया गया है. इस किस्म के फल आकार में छोटे होते हैं. जो हर साल अधिक पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के फलों का ज्यादा इस्तेमाल खाने में किए जाता है.

gettyimages x

major pests diseases and control of mango

खेत की तैयारी आम के पौधे एक बार लगाने के बाद लगभग 20 साल से भी ज्यादा टाइम तक पैदावार देते है. इसके पौधे खेत में तैयार किये गए गड्डों में लगाए जाते हैं. इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर उसे खुला छोड़ दें. उसके कुछ दिन बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लें. मिट्टी को भुरभुरी बनाने के बाद खेत में पाटा लगा दें. इसे भूमि समतल दिखाई देने लगती है. मिट्टी के समतल होने पर जल भराव जैसी परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ता. खेत के समतल हो जाने के बाद लगभग 5 मीटर की दूरी छोड़ते हुए एक मीटर चौड़े व्यास और आधा से एक मीटर गहराई का गड्डा तैयार कर लें. गड्डों को खोदने के बाद उनमें उचित मात्रा में उर्वरक मिट्टी में मिलाकर उन्हें वापस गड्डों में भर देते हैं. मिट्टी को वापस भरने के बाद गड्डों में पानी भरकर उनकी सिंचाई कर देते हैं. जिससे पौध लगाने के वक्त तक मिट्टी अपघटित होकर कठोर हो जाए. इन गड्डों को पौध रोपाई से एक महीने पहले तैयार किया जाता है. पौध तैयार करना आम की पौध बीज और कलम दोनों माध्यम से तैयार की जाती है. लेकिन बीज से पौध तैयार करने पर पौधे 6 से 8 साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. जबकि कलम के माध्यम से तैयार की गई पौध लगभग तीन साल बाद ही पैदावार देना शुरू कर देती है. नर्सरी में इन कलमों को पौध लगाने के कई महीने पहले तैयार किया जाता है. आम की पौध नर्सरी में भेट कलम, गूटी या ग्राफ्टिंग विधि के माध्यम से तैयार की जा सकती है. पौध बनाने के अलावा वर्तमान में सरकार द्वारा रजिस्टर्ड कई ऐसी नर्सरी भी जहां उत्तम किस्म के पौधे आसानी से मिल जाते हैं. इन नर्सरीयों से पौधे उचित रेट पर खरीदकर किसान भाई पौध तैयार करने में लगने वाले टाइम को बचा सकते हैं.

mango tree x

major pests diseases and control of mango

पौध रोपण का तरीका और टाइम आम की पौध तैयार होने के बाद उसे खेत में लगाया जाता है. खेत में इन पौधों को तैयार किये हुए गड्डों में लगाया जाता है. गड्डों में पौध लगाने से पहले गड्डों के बीच में एक और छोटे आकार का गड्डा तैयार किया जाता है. उसके बाद तैयार किये गए इन छोटे गड्डे में पौध लगाईं जाती है. गड्डों में पौध लगाने से पहले इनको उपचारित कर लेना चाहिए. गड्डों को उपचारित करने के लिए गोमूत्र या बाविस्टिन का उपयोग करना चाहिए. पौधे को गड्डों में लगाने के बाद उसे चारों तरफ से अच्छे से मिट्टी से दबा देना चाहिए. जहां सिंचाई की उचित व्यवस्था हो वहां आम के पौधे की रोपाई मार्च के बाद करते हैं. लेकिन जहां सिंचाई की उचित व्यवस्था ना हो वहां इसकी रोपाई बारिश के मौसम में की जाती है. इसके लिए जून और जुलाई का महीना सबसे उपयुक्त होता है. इस दौरान मौसम सुहाना बना रहता है. जिससे पौधों का अंकुरण भी अच्छे से होता है. और पौधा अच्छे से विकास भी करता है. पौधों की सिंचाई आम के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है. शुरुआत में साल भर में इसके पौधे को 12 से 15 सिंचाई की आवश्यकता होती है. इसके पौधे की पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरंत बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद पौधे के विकास करने तक नमी बनाये रखने के लिए पौधों को पानी देते रहना चाहिए. इसके अलावा पौधे को गर्मियों में सप्ताह में एक बार पानी देना चाहिए. और सर्दियों में 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. उसके बाद जैसे जैसे पौधे की उम्र बढती जाती है वैसे वैसे ही पौधों की सिंचाई करने का वक्त भी बढ़ा देना चाहिए. जब पौधा 8 बाद पूर्ण रूप से बड़ा हो जाए तब उसे साल में दो से तीन सिंचाई की ही जरूरत होती है. जब पौधे पर तीन साल बाद फूल और फल बनने शुरू हो तब पौधों को पानी नही देना चाहिए. क्योंकि इस दौरान पानी देने पर पौधे से फूल झड जाते है. और पैदावार भी कम प्राप्त होती है. फल बनने के बाद उनके विकास के लिए पौधों को उचित टाइम पर पानी देते रहना चाहिए.

ccfffcaddbe

major pests diseases and control of mango

उर्वरक की मात्रा आम के पौधे को शुरुआत में अच्छे से विकास करने के लिए उचित मात्रा में उर्वरक की आवश्यकता होती है. इसके लिए खेत में गड्डे तैयार करते वक्त प्रत्येक गड्डों में 25 किलो पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा 150 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को तीन बराबर भागों में बांटकर उसे साल में तीन बार दें. जब पौधा तीन साल का हो जाए और फल देना शुरू कर दें. तब उर्वरक की इस मात्रा में वृद्धि कर देनी चाहिए. पौधों को दी जाने वाली रासायनिक उर्वरक की मात्रा को 10 से 12 साल के अंतराल में लगभग एक किलो तक बढ़ा देनी चाहिए. रासायनिक उर्वरक की इस एक किलो मात्रा को साल में चार बार देना चाहिए. इससे पौधा अच्छे से विकास करता है और फल भी अधिक मात्र में आते हैं. पौधों का रखरखाव और कटाई छटाई आम का पौधा जब शुरुआत में काफी छोटा होता है तब उसे ज्यादा सुरक्षा की आवश्यकता होती है. शुरुआत में पौधे को जंगली और आवारा पशुओं से बचाकर रखा जाता है. क्योंकि पशुओं के खाने से पौधा सम्पूर्ण नष्ट भी हो जाता है, या फिर उपर से खाने के बाद पौधे को फिर से विकास करने के लिए काफी वक्त लग सकता है. इन आवारा पशुओं से बचाव के लिए या तो खेत के चारों तरफ पक्की दीवार लगा दें, या फिर लोहे की जाली लगाकर खेत की सुरक्षा करनी चाहिए. पशुओं के अलावा शुरुआत में पौधे को तेज़ धूप और सर्दियों में पड़ने वाले पाले से भी बचाकर रखा जाता है. पौधे को तेज़ धूप और पाले से बचाने के लिए उसे नियमित अंतराल पर पानी देते रहना चाहिए. इसके अलावा पौधे को शुरुआत में किसी ऐसी चीज़ से ढक देना चाहिए, ताकि पौधे को तेज़ सर्दी और गर्मी से बचाया जा सके. पौधे की कटाई छटाई करते वक्त शुरुआत में एक से डेढ़ मीटर तक कोई भी शाखा का निर्माण ना होने दे. इससे पौधा का आकार अच्छे से बनता है. और तना भी मजबूत बनता है. इसके अलावा जब पौधा बड़ा हो जाए तब पौधे में दिखाई देने वाली सुखी और रोगग्रस्त शाखाओं को काटकर हटा देनी चाहिए. इससे पौधे पर नई शाखाओं का निर्माण होता है. जिससे पैदावार में भी वृद्धि देखने को मिलती है.

mango tree

major pests diseases and control of mango

खरपतवार नियंत्रण आम के पौधों में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक तरीके से नही करना चाहिए. आम की खेती में खरपतवार नियंत्रण पौधों की नीलाई गुड़ाई कर करना चाहिए. इसके पौधों की पहली गुड़ाई पौधा लगाने के एक महीने बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद शुरुआती साल में 8 से 10 गुड़ाई करने पर पर पौधा अच्छे से विकास करता है. और जल्द ही फल देने के लिए तैयार हो जाता है. उसके बाद जब पौधा पूरी तरह से विकसित ही जाए तब पौधे की साल में तीन से चार गुड़ाई काफी होती है. इसके अलावा पौधों के बीच बची बाकी की खाली भूमि में अगर कोई फसल नही उगा रखी हो तो बारिश के मौसम के तुरंत बाद जब जमीन सूखी हुई दिखाई दे तभी उसकी जुताई कर देनी चाहिए. इससे जन्म लेने वाली खरपतवार शुरुआत में ही नष्ट हो जाती है. पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम आम के पौधे में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिससे इसकी पैदावार में फर्क देखने को मिलता है. इस कारण इसके पौधों की उचित देखभाल करते रहना चाहिए. गुठली का घुन (स्टोन वीविल)- यह कीट घुन वाली इल्ली की तरह होता है जो आम की गुठली में छेद करके घुस जाता है और उसके अन्दर अपना भोजन बनाता रहता है। कुछ दिनों बाद ये गूदे में पहुंच जाता है और उसे हानि पहुंचाता है। इस की वजह से कुछ देशों ने इस कीट से ग्रसित बागों से आम का आयात पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था। रोकथाम- इस कीड़े को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन होता है इसलिए जिस भी पेड़ से फल नीचे गिरें उस पेड़ की सूखी पत्तियों और शाखाओं को नष्ट कर देना चाहिए। इससे कुछ हद तक कीड़े की रोकथाम हो जाती है। जाला कीट (टेन्ट केटरपिलर)- प्रारम्भिक अवस्था में यह कीट पत्तियों की ऊपरी सतह को तेजी से खाता है। उसके बाद पत्तियों का जाल या टेन्ट बनाकर उसके अन्दर छिप जाता है और पत्तियों को खाना जारी रखता है। रोकथाम- पहला उपाय तो यह है कि एजाडीरेक्टिन 3000 पीपीएम ताकत का 2 मिली लिटर को पानी में घोलकर छिड़काव करें। दूसरा संभव उपाय यह किया जा सकता है कि जुलाई के महीने में किवनालफॉस 0.05 फीसदी या मोनोक्रोटोफास 0.05 फीसदी का 2-3 बार छिड़काव करें

article image

major pests diseases and control of mango

दीमक- दीमक सफेद, चमकीले एवं मिट्टी के अन्दर रहने वाले कीट हैं। यह जड़ को खाता है उसके बाद सुरंग बनाकर ऊपर की ओर बढ़ता जाता है। यह तने के ऊपर कीचड़ का जमाव करके अपने आप को सुरक्षित करता है। रोकथाम- इन उपायों से अपने पेड़ों को बचाएं

  • तने के ऊपर से कीचड़ के जमाव को हटाना चाहिए।
  • तने के ऊपर 5 फीसदी मेलाथियान का छिड़काव करें।
  • दीमक से छुटकारा मिलने के दो महीने बाद पेड़ के तने को मोनोक्रोटोफाॅस (1 मिली प्रति लिटर) से मिट्टी पर छिड़काव करें।
  • दस ग्राम प्रति लिटर ब्यूवेरिया बेसिआना का घोल बनाकर छिड़काव करें।

 

article image

mango farming

फुदका या भुनगा कीट- यह कीट आम की फसल को सबसे अधिक क्षति पहुंचाते हैं। इस कीट के लार्वा एवं वयस्क कीट कोमल पत्तियों एवं पुष्पक्रमों का रस चूसकर हानि पहुचाते हैं। इसकी मादा 100-200 तक अंडे नई पत्तियों एवं मुलायम प्ररोह में देती है और इनका जीवन चक्र 12-22 दिनों में पूरा हो जाता है। इसका प्रकोप जनवरी-फरवरी से शुरू हो जाता है। रोकथाम- इस कीट से बचने के लिए ब्यूवेरिया बेसिआना फफूंद के 0.5 फीसदी घोल का छिड़काव करें। नीम तेल 3000 पीपीएम प्रति 2 मिली प्रति लिटर पानी में मिलाकर, घोल का छिड़काव करके भी निजात पाई जा सकती है। इसके अलावा कार्बोरिल 0.2 फीसदी या क्विनोलफाॅस 0.063 फीसदी का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी राहत मिल जाएगी। फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई)- फलमक्खी आम के फल को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचाने वाला कीट है। इस कीट की सूंडियां आम के अन्दर घुसकर गूदे को खाती हैं जिससे फल खराब हो जाता है। रोकथाम- यौनगंध के प्रपंच का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें मिथाइल यूजीनॉल 0.08 फीसदी एवं मेलाथियान 0.08 फीसदी बनाकर डिब्बे में भरकर पेड़ों पर लटका देने से नर मक्खियां आकर्षित होकर मेलाथियान द्वारा नष्ट हो जाती हैं। एक हैक्टेयर बाग में 10 डिब्बे लटकाना सही रहेगा। गाल मीज- इनके लार्वा बौर के डंठल, पत्तियों, फूलों और छोटे-छोटे फलों के अन्दर रह कर नुकसान पहुंचाते हैं। इनके प्रभाव से फूल एवं फल नहीं लगते। फलों पर प्रभाव होने पर फल गिर जाते हैं। इनके लार्वा सफेद रंग के होते हैं, जो पूर्ण विकसित होने पर भूमि में प्यूपा या कोसा में बदल जाते हैं। रोकथाम- इनके रोकथाम के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करना चाहिए। रासायनिक दवा 0.05 फीसदी फोस्फोमिडान का छिड़काव बौर घटने की स्थिति में करना चाहिए।  

article image

major pests diseases and control of mango

आम पर लगने वाले रोग व उनसे बचाव के उपाय सफेद चूर्णी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू)- बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बदलने वाला हो या बरसात हो रही हो तो यह बीमारी प्रायः लग जाती है। इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफेद दिखाई पड़ने लगता है। अंततः मंजरियां और फूल सूखकर गिर जाते हैं। इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर 5 प्रतिशत वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त 500 लिटर पानी में 250 ग्राम कैराथेन घोलकर छिड़काव करने से भी बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में बौर आने के समय मौसम असामान्य रहा हो वहां हर हालत में सुरक्षात्मक उपाय के आधार पर 0.2 प्रतिशत वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें एवं आवश्यकतानुसार दोहराएं। कालवूणा (एन्थ्रेक्नोस)- यह बीमारी अधिक नमी वाले क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है। इसका आक्रमण पौधों के पत्तों, शाखाओं और फूलों जैसे मुलायम भागों पर अधिक होता है। प्रभावित हिस्सों में गहरे भूरे रंग के धब्बे आ जाते हैं। प्रतिशत 0.2 जिनकैब का छिड़काव करें। जिन क्षेत्रों में इस रोग की सम्भावना अधिक हो वहां सुरक्षा के तौर पर पहले ही घोल का छिड़काव करें। ब्लैक टिप (कोएलिया रोग)- यह रोग ईंट के भट्टों के आसपास के क्षेत्रों में उससे निकलने वाली गैस सल्फर डाई ऑक्साइड के कारण होता है। इस बीमारी में सबसे पहले फल का आगे का भाग काला पड़ने लगता है इसके बाद ऊपरी हिस्सा पीला पड़ता है। इसके बाद गहरा भूरा और अंत में काला हो जाता है। यह रोग दशहरी किस्म में अधिक होता है। इस रोग से फसल बचाने का सर्वोत्तम उपाय यह है कि ईंट के भट्टों की चिमनी आम के पूरे मौसम के दौरान लगभग 50 फुट ऊंची रखी जाए। इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही बोरेक्स 10 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से बने घोल का छिड़काव करें। फलों के बढ़वार की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान आम के पेड़ों पर 0.6 प्रतिशत बोरेक्स के दो छिड़काव फूल आने से पहले तथा तीसरा फूल बनने के बाद करें। जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाएं तो 15 दिन के अंतराल पर तीन छिड़काव करने चाहिए।

article image

major pests diseases and control of mango

गुच्छा रोग (माल्फार्मेशन)- इस बीमारी का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है। बीमारी का नियंत्रण प्रभावित बौर और शाखाओं को तोड़कर किया जा सकता है। अक्टूबर माह में 200 प्रति दस लक्षांश वाले नेप्थालिन एसिटिक एसिड का छिड़काव करना और कलियां आने की अवस्था में जनवरी के महीने में पेड़ के बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है क्योंकि इससे न केवल आम की उपज बढ़ जाती है अपितु इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है। पत्तों का जलना- उत्तर भारत में आम के कुछ बागों में पोटेशियम की कमी से एवं क्लोराइड की अधिकता से पत्तों के जलने की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है। इस रोग से ग्रसित वृक्ष के पुराने पत्ते दूर से ही जले हुए जैसे दिखाई देते हैं। इस समस्या से फसल को बचाने हेतु पौधों पर 5 प्रतिशत पोटेशियम सल्फेट के छिड़काव की सिफारिश की जाती है। यह छिड़काव उसी समय करें जब पौधों पर नई पत्तियां आ रही हों। ऐसे बागों में पोटेशियम क्लोराइड उर्वरक प्रयोग न करने की सलाह भी दी जाती है। 0.1 प्रतिशत मेलाथिऑन का छिड़काव भी प्रभावी होता है। डाई बैक- इस रोग में आम की टहनी ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है और धीरे-धीरे पूरा पेड़ सूख जाता है। यह फफूंद जनित रोग होता है, जिससे तने की जलवाहिनी में भूरापन आ जाता है और वाहिनी सूख जाती है एवं जल ऊपर नहीं चढ़ पाता है। इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रसित टहनियों के सूखे भाग को 15 सेंटीमीटर नीचे से काट कर जला दें। कटे स्थान पर बोर्डो पेस्ट लगाएं तथा अक्टूबर माह में कॉपर ऑक्सीकलोराइड का 0.3 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।

आम की फसल में सुमिटोमो केमिकल के कीटोशी का उपयोग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *