फॉल आर्मी वर्म टिड्डी की तरह पूरी फसल नष्ट करने की क्षमता रखता है। यह कीट सबसे पहले 2015 में अमेरिका में पाया गया था। इसके बाद 2017 के अंत तक यह 54 अफ्रीकी देशों में से 44 देशों में फैल चुका है। वहां इस कीट ने काफी नुकसान पहुंचाया है। मई, 2018 में कर्नाटक के शिवगोमा में पाया गया। इसके बाद हसन, बेंगलुरू व चिकबालापुर में देखा गया। इसके आंध्र प्रदेश, गुजरात व बिहार में भी पाए जाने की सूचना है। यह कीट एक दिन में एक सौ किमी तक की उड़ान कर लेता है।
ऐसे पहचाने कीट को : छोटी से तीसरी अवस्था तक इसके लार्वा को पहचानना मुश्किल है, लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता, इसकी पहचान आसान हो जाती है। इसके सिर पर उलटी वाई के आकार का निशान दिखाई देती है। साथ ही लार्वा के 8 वे बॉडी सेगमेंट पर 4 बिंदु वर्गाकार आकृति में देखे जा सकते हैं। फॉल आर्मीवर्म कीट के सिर के तरह चार बिंदू होते हैं। यह इसकी पहचान का तरीका है।
एक बार में दो सौ तक अंडे : इसकी वयस्क मादा एक बार में 50 से 200 तक अंडे देती है। यह मादा अपने जीवन काल (7से 21 दिन) में 10 गुच्छे अंडे यानी 1700 से 2000 तक अंडे दे सकती है। ये अंडे 3 से 4 दिन में फूट जाते हैं और इनमें से लार्वा निकलते हैं। लारवल पीरियड 14 से 22 दिन होता है, प्यूपल पीरियड 7 से 13 दिन का होता है। इस कीट का जीवन चक्र 30 से 61 दिन का होता है।
पौधों को ऐसे पहुंचाता है नुकसान : छोटी लार्वा पौधों की पत्तियों को खुरचकर खाती है, जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे लार्वा बड़ी होती है, पौधों की ऊपरी पत्तियों को खा जाती है और लार्वा बड़ा होने के बाद मक्का के गाले में घुसकर पत्तियां खाती रहती हैं। पत्तियों पर बड़े गोल-गोल छिद्र एक ही कतार में नजर आते हैं।
ऐसे करें नियंत्रण : इस कीट से बचने के लिए मक्का की अगेती बुवाई करना सबसे कारगर उपाय है। दूसरा, मक्का के बाद अगले वर्ष मक्का की बुवाई नहीं करे।
कीटनाशकों का उपयोग : फॉल आर्मी वर्म या लश्करी इल्ली की शुरुवाती अवस्था में 300 मिली सुमपिलियो और 300 मिली डायपेल प्रति एकड़ इस्तेमाल करें। अब आप सोच रहे होंगे की दो दवाइयां क्यों इस्तेमाल करनी है। जब भी डायपेल और सुमपिलियो को मिलकर मक्के में हम इस्तेमाल करते हैं तो ये दोनों सम्मलित प्रक्रिया से मक्के की इल्ली को खत्म कर देती हैं। आइये जानते हैं की ये दोनों मक्के की इल्ली को मारती कैसे हैं जैसे ही आप मक्के के पौधे पर दवाई का छिड़काव करते है तो जब उस छिड़काव हुए पत्ते को इल्ली खाती है तो लगभग १२ घंटे के बाद इल्ली का पेट फट जाता हैं, बाकि दवाइयाँ कुछ दिन के बाद बेअसर हो जाती हैं किन्तु डायपेल और सुमपिलियो के कुछ खास तत्वों की वजह से यह इल्ली पर ज्यादा समय तक असरदार रहती हैं डायपेल और सुमपिलियो तीन तरीको से इल्ली पर असर करती है। पहला : जब भी इल्ली छिड़काव हुए पत्तों को खाती है तो कुछ ही समय में मरना शुरू हो जाती है। दूसरा : जब भी इल्ली छिड़काव हुए पत्तों के संपर्क में आती है तो कुछ ही समय में मरना शुरू हो जाती है। तीसरा : जब भी इल्ली छिड़काव के दौरान दवाई के संपर्क में आती है तो कुछ ही समय में मरना शुरू हो जाती है।
डायपेल और सुमपिलियो का उपयोग कैसे करें : आइये जानते है की इसका इस्तेमाल कैसे करना चाहिए 300 मिली प्रति एकड़ सुमपिलियो और 300 प्रति एकड़ मिली डायपेल 200 लीटर पानी में लेकर घोल बना ले और शाम के समय छिड़काव करें। ध्यान रखे की छिड़काव करते समय पौधे के ऊपरी हिस्सों के साथ साथ पुरे पौधे का भीगना बहुत जरुरी है और इसका इस्तेमाल इल्ली की शुरुवाती अवस्था में ही करें ताकि ये इल्ली पर ज्यादा से ज्यादा असर कर सके।
डायपेल और सुमपिलियो इस्तेमाल करने के फायदे : भारत के कई प्रदेशो में किसानो ने डायपेल और सुमपिलियो का इस्तेमाल करके फॉल आर्मी वर्म या लश्करी इल्ली से 100 प्रतिशत छुटकारा पाया है ज्यादा जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट www.lashkariilli.com देखे और निचे दिए गए वीडियो को अच्छी तरह से देखे।