Scientists ready for field 1

कपास की फसल में सफेद मक्खी से निपटने के लिए क्या करें किसान भाई

किसान भाइयों जैसा कि आप देख रहे होंगे की बारिश के बाद तापमान लगातार बढ़ा हुआ है। यह मौसम सफेद-मक्खी के लिए बहुत अनुकूल है हमारी कपास (या नरमा) अब सफेद-मक्खी के प्रभाव में आ सकती है।

कपास की सफेद मक्खी के बारे में : सफ़ेद मक्खी को अंग्रेजी में वाइट फ्लाई (White Fly In Cotton) के नाम से जाना जाता है। सफेद मक्खी छोटा सा तेज उडऩे वाला पीले शरीर और सफेद पंख का कीड़ा है। छोटा एवं हल्के होने के कारण ये कीट हवा द्वारा एक से दूसरे स्थान तक आसानी से चले जाते हैं।

इसके अंडाकार शिशु पतों की निचली सतह पर चिपके रहकर रस चूसते रहते हैं। भूरे रंग के शिशु अवस्था पूरी होने के बाद वहीं पर यह प्यूपा में बदल जाते हैं। ग्रसित पौधे पीले व तैलीय दिखाई देते हैं। जिन काली फंफूदी लग जाती है। यह कीड़े न कवेल रस चूसकर फसल को नुकसान करते हैं। कपास की फसल में यह मक्खियां पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूस कर पौधों कमजोर बना देती हैं। सफेद मक्खी पौधों पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ती हैं जिससे फफूंद निकलने लगते हैं। सफेद मक्खी लगने पर पौधों की पत्तियां सुकड़कर मुड़ने लगती है।

जीवन यात्रा – इस कीट का प्रजनन सारा साल चलता रहता है। इस कीट की प्रौढ़ मादा अपने जीवन काल में सौ से सवासौ अंडे देती है। अंडे पत्तियों की निचली सतह पर दिए जाते हैं पाँच से छ: दिन के बाद, इन अण्डों से बच्चे निकलते है। अंडे का आकार इंच का तीसवां हिस्सा ही होता है, ये अंडे रस चूसने का सही स्थान ढूंढने के लिए ही नाममात्र को चलते है, फ़िर एक ही जगह पड़े पड़े रस चूसते रहते हैं। पॉँच छ: दिन की इस प्रक्रिया के बाद ये अंडे स्यूडो प्यूपा में तब्दील हो जाते हैं। एक सप्ताह में ही स्यूडो प्यूपा प्रौढ़ के रूप में विकसित हो जाते है। इनका प्रौढिय जीवन आमतौर पर बीस इक्कीस दिन का होता है.

कपास में सफ़ेद-मक्खी नुक्सान कैसे पहुंचती है ?

आइए समझते हैं की सफेद-मक्खी किस तरह हमारे कपास के पौधे को नुकसान पहुंचाती है। शुरुआत में कपास में सफ़ेद-मक्खी की संख्या बहुत कम होती है परंतु यह संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है और बहुत ज्यादा नुकसान का कारण बनती है। सफेद-मक्खी (या व्हाइट फ्लाई) पौधे के रस को चूसती हैं और एक चिपचिपा पदार्थ उत्पन्न करती हैं जिसे हनीड्यू कहा जाता है, हनीड्यू के कारण पौधे में फंगल की बीमारियां हो जाती है। सफेद-मक्खी (या व्हाइट फ्लाई) के कारण, पौधे जल्दी ही बेहद कमजोर हो जाते है और प्रकाश संश्लेषण करने में असमर्थ हो जाते है। सफेद-मक्खी के कारण पत्तिया टूट कर गिरने लगती है या पिली पड़ जाती है और पौधे का विकास रुक जाता है

कपास में सफेद मक्खी से बचाव – इससे बचाव को लेकर किसानों को चाहिए कि वह अपनी कपास की फसल का हर सप्ताह बारीकी से निरीक्षण करें। निरीक्षण के दौरान सफेद मच्छर/मक्खी के छह से आठ व्यस्क प्रति पत्ता पाए जाने पर ही कीटनाशकों का छिड़काव शुरू करें। कपास के खेत में व आसपास खरपतवार जैसे कांगी बूटी, पीली बूटी, कांग्रेस घास, जंगली सूरजमुखी इत्यादि को नष्ट कर दें, क्योंकि इन पर सफेद मच्छर/मक्खी ज्यादा पनपती है।

कीटनाशकों का छिड़काव : सफेद मच्छर/मक्खी के नियंत्रण हेतु सुमीटोमो केमिकल का “लेनो” 500 ML प्रति एकड़ के हिसाब से 1500 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें। लेनो का स्प्रे करने के 5 दिन के अंदर ही आपको अपने कपास के खेत में उसका असर देखने को मिलेगा। ज्यादा अच्छे रिजल्ट के लिए लेनो के 2 स्प्रे 15 दिन के अंतराल पर करें। लेना देता है सफेद मच्छर पर सबसे अच्छा और लम्बा कण्ट्रोल और ये कपास की फसल को काली या पिली नहीं पड़ने देता और उसकी हरयाली बनाये रखता है। कपास में सफेद मच्छर क्यों इतना हानिकारक है एवं लेनो के फायदे और उपयोग के तरीके के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारी ये वीडियो जरूर देखें।

https://youtu.be/2npgQurndm8

किसानों के अनुभव जानने के लिए निचे दिए गए वीडियो जरूर देखें।

https://youtu.be/OGqnnGeiToM

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *