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कपास की फसल में रोग एवं उपचार

कपास की फसल पर लगने वाले रसचूसक कीटों में सफेद मच्छर/मक्खी सबसे ज्यादा हानिकारक है। दस कीट के बच्चे व व्यस्क कपास के पत्तों के निचले हिस्से से लगातार रस चूसते रहते हैं और शहदनूमा चिपचिपा पदार्थ छोड़ते रहते हैं।

इस पर फफूंदी लग जाने के कारण पत्ते काले पड़ जाते है। ज्यादा प्रकोप होने पर पौधे की बढ़वार रुक जाती है व फूल व बोंकी गिर जाते हैं व टिंडो का आकार छोटा रह जाता है।

इससे बचाव को लेकर किसानों को चाहिए कि वह अपनी कपास की फसल का हर सप्ताह बारीकी से निरीक्षण करें। निरीक्षण के दौरान सफेद मच्छर/मक्खी के छह से आठ व्यस्क प्रति पत्ता पाए जाने पर ही कीटनाशकों का छिड़काव शुरू करें। कपास के खेत में व आसपास खरपतवार जैसे कांगी बूटी, पीली बूटी, कांग्रेस घास, जंगली सूरजमुखी इत्यादि को नष्ट कर दें, क्योंकि इन पर सफेद मच्छर/मक्खी ज्यादा पनपती है।

कपास के खेत में 20 पीले ग्रीस से चिपचिपे ट्रैप प्रति एकड़ स्थापित करें, क्योंकि सफेद मक्खी पीले रंग के प्रति आकर्षित होकर इससे चिपक कर मर जाती है। कपास की फसल में यूरिया खाद प्रति एकड़ 120 किलोग्राम से अधिक न डाले।

सफेद मच्छर/मक्खी के नियंत्रण हेतु सुमीटोमो केमिकल का “लेनो” 500 ML प्रति एकड़ के हिसाब से 1500 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें। लेनो का स्प्रे करने के 5 दिन के अंदर ही आपको अपने कपास के खेत में उसका असर देखने को मिलेगा। ज्यादा अच्छे रिजल्ट के लिए लेनो के 2 स्प्रे 15 दिन के अंतराल पर करें। लेना देता है सफेद मच्छर पर सबसे अच्छा और लम्बा कण्ट्रोल और ये कपास की फसल को काली या पिली नहीं पड़ने देता और उसकी हरयाली बनाये रखता है।

कपास में सफेद मच्छर क्यों इतना हानिकारक है एवं लेनो के फायदे और उपयोग के तरीके के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारी ये वीडियो जरूर देखें।

https://youtu.be/U5UDCtCDxYg

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